राजस्थान साहित्य महोत्सव "आडावळ" के आयोजन के क्रम में शनिवार दोपहर से रविवार दोपहर तक निर्बाध 24 घन्टे "राजस्थानी कवि जातरा" का आयोजन किया जाएगा, जो किसी भी भारतीय भाषा में पहला व अनुठा प्रयास है ।
साहित्य
महोत्सव "आडावळ" के निदेशक डॉ. शिवदान सिंह जोलावास ने बताया कि
"राजस्थानी कवि जातरा" में दुनिया के कई हिस्सों से 101 कवि, लेखक,
साहित्यकार अपनी मातृभाषा राजस्थानी को विश्व मे पहचान दिलाने तथा आठवीं
अनुसूची में जोड़ने के लिए 24 घण्टे लगातार रचना पाठ करेंगे जो की किसी भी
भाषा के सम्मान व पहचान के लिए पहला व अपनेआप में अनूठा प्रयास है । अपनी
मातृभाषा के कार्यक्रम में जुड़ने के लिए कई प्रवासी राजस्थानी दुनिया के
अलग - अलग हिस्सों से उत्साह से जुड़ रहे हैं।
"राजस्थानी कवि
जातरा" की संयोजक श्रीमती किरणबाला ने बताया कि "जातरा" कार्यक्रम के मुख्य
अतिथि डेल्फिक काउंसिल आफ राजस्थान के प्रदेश महासचिव डॉ. जितेंद्र कुमार
सोनी (आईएएस) होंगे तथा कार्यक्रम में राजस्थान एसोसिएशन कीनिया से जगदीश
माली, राजस्थान एसोसिएशन, यूके से इंदु बारेठ, श्रीमती अंजलि शर्मा तिवारी,
माय राजस्थान क्लब यूएसए से नरेंद्र सिंह सोलंकी आदि राजस्थानी कवि दिन -
रात विश्व के अलग - अलग हिस्सों से अपनी प्रस्तुतियां देंगे ।
यह
कवि यात्रा ऑनलाइन अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, महाद्वीप होती
हुई पुनः एशिया में आएगी और उदयपुर में विविध स्थानों से जुटे प्रवासी
राजस्थानी कवियों द्वारा ऑफलाइन कविता पाठ किया जाएगा एवं इस यात्रा का
ऑनलाइन 24 घंटे सजीव प्रसारण किया जाएगा । यात्रा का चूरू से डॉ. सुरेंद्र
सोनी, नागौर से प्रहलाद सिंह झोरड़ा, झुंझुनू से श्रीमती सीमा राठौड़ आदि
विभिन्न सत्रों का संचालन करेंगे जिसमें सुबह के सत्र में करणी मां की
चिरजा, एवं मीरा के पदों का पाठ किया जाएगा ।
राजस्थानी सिनेमा के
कलाकार श्रवण सागर ने "आडावळ" की उदयपुर में चल रही कार्यशाला में राजस्थान
की छपाई, सिलाई, कढ़ाई की परंपरागत तकनीकों को देखा और कहा कि हम सभी के
सामूहिक प्रयास व सहयोग से ही अपनी लोककला विरासत को जीवित रखते हुए कलाकार
परिवारों को आजीविका एवं सम्मान दिया जा सकता है ।
मेवाड़ के डंके का काम दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है अब मायड़ भाषा का डंका भी मेवाड़ से गुंजा है। अब पूर्ण विश्वास है कि डंके की चोट पर राजस्थानी भाषा जल्द ही आठवीं अनुसूची में शामिल होगी । आयोजन समिति के उपाध्यक्ष योगेश कुमावत ने कहा कि राजस्थान का पहनावा, खान-पान, संगीत, साहित्य, किले प्राचीर सभी संरक्षण योग्य है तथा यहाँ की भाषा एवं संस्कृति जीवंत विरासत है । इस विरासत का मान सम्मान बनाए रख इसे नयी पीढ़ी को सौंपना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
एस.बी.आई, माणक पत्रिका, पर्यटन विभाग राजस्थान सरकार आदि ने भाषा के सम्मान हेतु में समारोह में सहयोग किया । अमी संस्थान सचिव श्रीमती राजेश्वरी राणावत ने कार्यक्रम में अतिथियों एवं सहयोग हेतु संस्थाओं का आभार व्यक्त किया ।