कश्मकश जिंदगी की....
बताना तो बहुत कुछ चाहता हूँ, पर बता कहाँ पाता हूँ,
सच तो यह है कि हर पल जीना है तेरे बिना, पर एक पल भी जी कहाँ पाता हूँ
कोशिश तो पल-पल होती है तुझे भुलाने की, पर एक पल भी कहा भुला पाता हू
देखना चाहता हूँ हर रात ख्वाब तुम्हारे पर, खुद को कहा सुला पाता हैं!
तू अगर देख पाती तो समझ तो समझ जाती कि इस लाचारी को, कहाँ छुपा पाता हूँ!
बह जाता है सितम आंखो से, पर सह भी कहाँ पाता हूँ!
नामुमकिन है जीना तेरे बिना, पर मजबूर हूँ मर ही कहाँ पाता हूँ!
अजीब काश्मकश है ज़िंदगी कि, सोचता हूँ कि फिर से तुझे मना लूँ,
पर सच तो यह कि यह कोशिश ही कहा कर पाता हूँ..!!
दिनेश आकवा ( मि.पंचाल )